Chardham Yatra 2023: सज गया है बद्रीनाथ का दरबार, कल खुलेंगे कपाट। जानें धाम में शंख न बजाने और दीपक से जुड़ी कथा..
बद्रीनाथ धाम का दरबार सज चुका है, कल यानी 27 अप्रैल 2023 को बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलेंगे, जिसकी तैयारियां जोरों-शोरों से शुरू हो गई हैं। इसके साथ ही चारधाम की यात्रा भी शुरू हो चुकी है। इससे पहले केदारनाथ धाम के कपाट भी 25 अप्रैल को खोल दिए गए थे। यमुनोत्री और गंगोत्री धाम की यात्रा भी शुरू हो गयी है। 25 अप्रैल 2023 को केदारनाथ धाम के कपाट खोले गए थे। भगवान बद्रीनाथ धाम के कपाट सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर पूजा अर्चना और विधि विधान के साथ खोले जाएंगे। कपाट खोलने के अवसर पर बद्रीनाथ मंदिर को तरह-तरह के फूलों से सजाया जा रहा है और श्रद्धालुओं में एक अलग ही उत्साह देखने को मिल रहा है।
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आदि गुरु शंकराचार्य बद्रीनाथ पहुंचे
आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी और मुख्य पुजारी जगद्गुरु रावल भीम शंकर लिंग शिवाचार्य सुबह रवाना हुए जो बद्रीनाथ पहुंच चुके हैं। मंदिर को करीब 20 क्विंटल फूलों से सजाया गया है। जोशीमठ नृसिंह मंदिर परिसर में पूजा-अर्चना के बाद आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी, गाडू घड़ तेल कलश यात्रा और बद्रीनाथ के रावल (मुख्य पुजारी) ईश्वर प्रसाद नंबूदरी व अन्य वेदपाठी योग बदरी मंदिर पांडुकेश्वर के लिए रवाना हो गए हैं। प्रधान शिवाचार्य रावल ने इससे पूर्व नृसिंह मंदिर में पूजा-अर्चना संपन्न की, इस दौरान भक्तों के जय बद्रीविशाल के जयकारों से जोशीमठ गुंज उठा।
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बद्रीनाथ धाम का महत्व
बद्रीनाथ धाम के बारे में कहा जाता है कि बद्रीनाथ धाम के दर्शन के बिना चार धाम यात्रा पूरी नहीं मानी जाती, ये श्रीहरि विष्णु का निवास स्थल है। बद्रीनाथ के बारे में एक कथा प्रचलित है – ‘जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी’ जिसका मतलब है जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, वो दोबारा जन्म नहीं लेता, मोक्ष को प्राप्त होता है। चार धाम यात्रा में अब नई व्यवस्था के चलते श्रद्धालुओं को टोकन दिया जाएगा। वह किस समय दर्शन कर सकते हैं ये भी बताया जाएगा, ताकि लंबी लाइन में न लगना पड़े।
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शंख न बजाने और दीपक से जुड़ी कथा
बदरीनाथ धाम के बारे में कहा जाता है कि जब कपाट खुलते हैं तो एक दीपक जलता मिलता है। इसके रहस्य का कोई पता नहीं लगा पाया है कि ये दीपक बंद कपाट में इतने लंबे समय तक कैसे जलता है। इसके अलावा बदरीनाथ धाम की पूजा को लेकर कहा जाता है कि यहां भगवान की पूजा में शंख नहीं बजाया जाता है। इसके अलावा शंख नहीं बजाने के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं भी हैं। यह कहानी भी प्रचलित है कि एक बार मां लक्ष्मी बद्रीनाथ में बने हुए तुलसी भवन में ध्यानमग्न थीं। तभी भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नाम के एक राक्षस का वध किया था। जीत का जश्न मनाने के लिए पहले शंख बजाया जाता था, लेकिन विष्णु जी लक्ष्मी जी के ध्यान में विघ्न नहीं डालने चाहते थे, इसलिए उन्होंने शंख नहीं बजाया। कहा जाता है कि तभी से बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाने की परंपरा है।
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