बुलंद हौसलों की कहानी: पिथौरागढ़ के बुंगाछीना में रिवर्स माइग्रेशन का कारण बना एक शिक्षण संस्थान..

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उत्तराखंड में कुल 16793 गांव है। जिनमें से तीन हजार गांव पूरी तरह से खाली हो चुके हैं। जबकि पांच हजार ऐसे गांव हैं जहां सड़क की सुविधा ही नहीं हैं। पलायन आयोग के अनुसार राज्य में 32 लाख लोग पिछले एक दशक में पलायन कर चुके है। जबकि 2 लाख 80 हजार घरों में ताले लटके हुए हैं। राज्य के पर्वतीय जिलों और उनके गांवों में रहने वाले युवाओं को अगर 12वीं के बाद व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त करनी हो तो उन्हें देहरादून और हल्द्वानी के साथ ही दिल्ली का रूख करना होता है। ऐसे में गरीब परिवारों के लिये ये संभव नहीं हो पाता और वो उच्च शिक्षा से वंछित रह जाते हैं। आज हम बात कर रहे जितेंद्र हनेरी और धमेंद्र हनेरी की जो चाहते तो महानगरों में आलिशान जिंदगी जी सकते थे। लेकिन उन्होंने चुना अपने गांव पिथौरागढ़ का सीमांत गांव बुंगाछीना को। जहां अब वो दोनों स्थानीय बच्चों को उच्च शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। आईटी सेक्टर में पांच पेटेंट और करोड़ों टर्नओवर का आईटी कंपनी की जिम्मेदारी का अहसास होने के बावजूद जितेंद्र और उनके छोटे भाई धमेंद्र न केवल अपने गांव लौटे बल्कि दूरस्थ सीमांत इलाकों में बसे परिवारों की युवा पीढ़ियों के लियेे बुंगाछीना में नर्सिंग पैरामेडिकल आईटी एग्रीकल्चर मैनेजमेंट एवं हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में कई रोजगारपरक कोर्स शुरू किया।

इस कॉलेज के कारण जहां स्थानीय सीमांत जिले के बच्चों को अपने ही क्षेत्र में उच्च स्तरीय व्यवसायिक शिक्षा मिल जाती है, वहीं महानगरों में रहने और तमाम दूसरों खर्चों का बोझ उनके परिवार पर नहीं पड़ता। आज जितेंद्र और धमेंद्र अपने कॉलेज में ही इन सभी छात्र छात्राओं के बीच रहते हैं और उन्हें उनकी कोर्स की क्लास के अलावा अपने अनुभव की स्पेशल पाठशाल भी देते हैं। जिन्हें बच्चे खासा पसंद भी करते हैं। जितेंद्र हनेरी बताते हैं कि उन्होंने अपने गांव में 14 किलोमीटर पैदल जाकर प्रारंभिक शिक्षा हासिल की थी। इसलिये वो इस दर्द को बेहतर समझते है कि उत्तराखंड के सीमांत इलाकों में शिक्षा के लिये कितनी मेहनत करनी होती है। गांव से प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद जितेंद्र को भी देहरादून का रूख करना पड़ा था। जहां से उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। आज जितेंद्र हनेरी की उत्तराखंड की सबसे बड़ी आईटी सर्विसेज की कंपनी है और पूरे भारत में 18 यूनिवर्सिटी में उनके बनाये ऑटोमेशेन सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है। अपने काम में सफलता हासिल करने के बाद जितेंद्र और उनके छोटे भाई धमेंद्र ने अपने गांव पिथौरागढ़ से तीस किलोमीटर दूर बूंगाछीना का रूख किया और वहीं बस गये। वहां उन्होंने होटल मैनेजमेंट कोर्स शुरू किया। जिसमें अभी तक कई बैच निकल कर देश दुनिया में सेवा दे रहे हैं। मौजूदा वक्त मेें पिथौरागढ़ ग्रुप ऑफ इंस्टीटयूशन में बीएमसी नर्सिंग, जीएनएम नर्सिंग, पैरामेडिकलए हॉस्पिटेलिटी मैनेजमेंट, बीएससी एग्रिकल्चर, बीसीए कोर्स चल रहे हैं।

जितेंद्र बताते हैं कि गरीब बच्चों के लिये उनके कॉलेज में स्कॉलरशिप प्रदान की जाती है। जिसमें तीस फीसद स्कॉलरशिप उन छात्र छात्राओं के लिये जो गरीब है। इसके लिये पीजीआई प्रवेश परीक्षा में टॉप करने वाले तीन बच्चों को अस्सी फीसद तक स्कॉलरशिप दी जाती है। इसके अलावा उत्तराखंड के मूलनिवास बच्चों के लिये 25 फीसद तक स्कॉलरशिप और सैन्य परिवार, राज्य आंदोलनकारी के लिये पांच फीसद और दिव्यांग बच्चों के लिये दस फीसद तक स्कॉलरशिप दी जाती है। जितेंद्र की सफलता की कहानी जितना आज की पीढ़ी को उत्साहित करती है। उतना ही ये संदेश भी देती है कि लक्ष्य के प्रति अगर निर्णायक संघर्ष और जुनून हो तो मुकम्मल सफलता मिल सकती है। राज्य के सबसे दुरस्थ सीमांत जिला पिथौरागढ़ के बुंगाछीना गांव में जन्मे जितेंद्र हनेरी की ये कहानी आज राज्य में सफलता के नई इबारत लिख रही है। आज से दस साल पहले 2008 में इंजीनियरिंग कॉलेज से पासआउट इंजीनियर जितेंद्र हनेरी को उनकी अकादमिक परिणामों के चलते लाखों रुपयों का सालाना पैकेज बहुराष्ट्रीय कंपनी से मिला तो परिजनों के साथ ही दोस्तों ने भी खूब बधाई दी।

जितेंद्र के पिता नारायण लाल उत्तराखंड में ही इंटर काॅलेज में बतौर प्रिंसिपल सेवायें दे चुके हैं। अपनी नौकरी के दौरान वो खुद राज्य के बेहद दुर्गम इलाकों में बच्चो को पढ़ा चुके हैं। इसलिय जब जितेंद्र ने अपने गांव लौटने का निर्णय लिया तो उनका साथ देने वालों में खुद उनके पिता भी थे। कॉलेज में तीसरे साल की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने अपने तीन साथियों के साथ कंपनी का गठन कर लिया। ये कंपनी देश में सबसे युवा इंजीनियरों की कंपनी बनी। उन्होंने पासआउट होने से पहले ही लाइब्रेरी ऑटोमेशन का सॉफ्टवेयर का विकास कर लिया था। लेकिन जब जीवन का असली संघर्ष शुरू हुआ तो कंपनी के अन्य साथियों ने साथ छोड़ बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी शुरू कर दी। लेकिन जितेंद्र ने हिम्मत नहीं छोड़ी और जल्द ही उन्होंने कई ऐसे सॉफ्टवेयर का निर्माण कियाए जिससे उनकी सफलता को नये पंख लगे। आज उनके पास पांच पेटेंट है। जिसमें प्रमुख रूप से साइबोर्ग ईआरपी, साइबोर्ग एलएमएस, साइबोर्ग एग्जाम, लिपसाइब और निपुण एप्लिकेशन है। आज उनकी कंपनी का टर्नओवर करोड़ों रुपयों में है। जिसमें उनके साथ लगभग डेढ़ सौ कर्मचारी काम करते हैं। उनके बनाये सॉफ्टवेयर आज राज्य के बड़े विश्व विद्यालयों के साथ ही कई प्रतिष्ठानों में चल रहे हैं।

जितेंद्र हनेरी ने देश का पहला स्वदेशी ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस एप्लीकेशन यलर्निंग मैनेजमेंट सिस्टमद्ध का विकास किया है। जो अमेरिका के गुगल मीट और चीन के जूम कॉन्फ्रेंस एप को टक्कर देने जा रहा है। जितेंद्र कुमार की कंपनी में राज्य के सबसे युवा और गरीब स्टूडेंट को जॉब मिलती है। जितेंद्र कुमार बताते हैं वो जब छोटे थे तो उनका स्कूल उनके गांव से 14 किलोमीटर दूरी पर था। जब वो स्कूल से थककर घर लौटते थे तो अक्सर सोचा करते थे कि वो अपने गांव में ही बच्चों लिये स्कूल और उच्च शिक्षण संस्थान खोलेंगे। आज उन्होंने अपने दुरस्थ गांव में गरीब और दलित बच्चों के लिये ये कार्य भी पूरा कर लिया है। बच्चों को अब उच्च तनकीकी प्रोफेशनल कोर्स लिये वहां से 600 किलोमीटर दूर राज्य की राजधानी देहरादून का रुख नहीं करना पड़ता। गांव के हिंदी मीडियम स्कूल से पढ़े जितेंद्र आज बड़ी कंपनी के सीईओ है। उनके सॉफ्टवेयर के सामने कई बहुराष्ट्रीय कंपनी फैल हो चुकी है। अब वो चाहते है कि वो अपने गांव में बच्चों के लिये ऐसा संस्थान का विकास करेए जिससे गांव के बच्चों को शुरूआती शिक्षा प्राप्त करते वक्त ही आईटी सेक्टर से जुड़ने में मदद मिले। जितेंद्र बताते हैं हम ऐसा इसलिये करना चाहते हैं, ताकि गांव के मैधाावियों को मौका मिले और मैधावी होने के चलते वो आभाव में छोटी मोटी मजदूरी कर गुरबत में जीवन न बिताये।

सबसे युवा पेटेंटधारी
36 साल के जितेंद्र हनेरी आज राज्य के सबसे युवा पेटेंटधारी है। उनके खाते में पांच पेटेंट है। उनके कई पेटेंट को अमेरिका और यूएई की बड़ी आईटी कंपनी खरीदना चाहती थी। लेकिन उन्होंने उन कंपनियों को पेटेंट बेचने के बजाये राज्य में ही बेहद मामूली दामों में उसे शिक्षण संस्थानों को उपयोग के लिये दिया। आज देश के 18 विश्व विद्यालयों में उनके एप्लिकेशन चल रहे है। जिसमें उत्तराखंड में कुमाउं यूनिवर्सिटी, ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी, उत्तरांचल यूनिवर्सिटी, एसजीआरआर यूनिवर्सिटी, देवभूमि यूनिवर्सिटी, क्वाटंम यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ इंजीनियरिंग रूड़की है। जितेंद्र बताते है उनके सॉफ्टवेयर के चलते तमाम शिक्षण संस्थान अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग कर पाते हैं। देश में पहली बार उत्तराखंड के विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन एग्जाम के साथ ही ऑनलाइन कॉपी चेक की गई।

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