उत्तराखंड के इतिहास का काला दिन 2 सितंबर, आज ही हुआ था मसूरी गोलीकांड। 6 लोग हुए थे शहीद..

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dark day in the history of uttarakhand. Hillvani News

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दो सितंबर 1994 की वह सुबह पलभर में ही कितनी दर्दनाक बन गई थी, उस जख्म को कोई नहीं भूल पाएगा। अलग प्रदेश के लिए मौन जुलूस के दौरान छह आंदोलनकारियों ने अपना बलिदान दिया था। पृथक राज्य की मांग कर रहे राज्य आंदोलनकारियों पर 2 सितंबर 1994 को मसूरी में जिस तरह के पुलिस ने गोलियां बरसाई थीं, वो मंजर भुलाए नहीं भूला जा सकता है। पुलिस की इस फायरिंग में छह राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए थे। लेकिन पुलिस की बर्बरता यहीं नहीं रुकी थी। इसके बाद शहीद राज्य आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि देने मसूरी पहुंची हजारों की भीड़ पर 15 सितंबर 1994 को भी पुलिस ने लाठीचार्ज किया था। मसूरी गोलीकांड के बाद पुलिस के लाठीचार्ज को भी शायद ही कोई भूल पाएगा।

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गोलीकांड के बाद राज्य आंदोलन एकदम उग्र हो गया
खटीमा गोलीकांड और मसूरी गोलीकांड ने आंदोलन को एक नयी दिशा दी। इन दो घटनाओं के बाद उत्तराखंड राज्य आंदोलन एकदम उग्र हो गया। 1 सितम्बर 1994 को खटीमा में गोलीकांड हुआ था, जिसमें कई लोग शहीद हुए। 1 सितम्बर 1994 की इस वीभत्स घटना के विरोध में 2 सितम्बर 1994 को खटीमा गोलीकांड के विरोध में राज्य आंदोलनकारी मसूरी गढ़वाल टेरेस से जुलूस निकाल कर उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के ऑफिस झूलाघर जा रहे थे। बताते हैं कि गनहिल पहाड़ी पर किसी ने पथराव कर दिया, जिससे बचने के लिए राज्य आन्दोलनकारी समिति के कार्यालय की तरफ आने लगे। कहते हैं कि पथराव करने वाले समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता थे। तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दमन के लिए, कई अनैतिक प्रयास किए। लेकिन वे अपने मंसूबों में सफल नहीं हो पाए। पथराव की आड़ में उत्तर प्रदेश की पीएसी ने निरपराध और निहथे आंदोलनकारियों पर गोली चला दी।

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उत्तराखंड के इतिहास में काला दिन
मसूरी गोलीकांड में 06 आंदोलनकारी शहीद हो गए थे। इसमें 2 महिलाएं भी शामिल थी। यह गोलीकांड इतना वीभत्स था कि एक महिला आंदोलनकारी, बेलमती चौहान के सर से बन्दूक सटा कर गोली मार दी गई थी, उत्तर प्रदेश पुलिस ने इन 6 आंदोलनकारियों के अलावा उत्तर प्रदेश पुलिस के डीएसपी उमाकांत त्रिपाठी भी मारे गए थे। बताते हैं कि वे आंदोलनकारियों पर गोली चलाने के पक्ष में नहीं थे। इसलिए उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें भी गोली मार दी। उस समय उत्तर प्रदेश सरकार ने इस आंदोलन के दमन के लिए कई अनैतिक हथकंडे अपनाए थे। उत्तराखंड राज्य का गठन कई संघर्षों और प्राणों की आहुति देने के बाद हुआ है। 2 सितंबर का दिन उत्तराखंड के इतिहास में काला दिन के रूप में मनाया जाता है। यह वही दिन है जिसने पूरे उत्तराखंड को झकझोर कर रख दिया था। बता दें कि आज मसूरी गोलीकांड की 28वी बरसी है। आज आंदोलनकारी इस बात को लेकर खफा हैं कि उनके सपनों का उत्तराखंड नहीं बन पाया।

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मसूरी गोलीकांड के शहीद
बेलमती चौहान – ग्राम खलोन, पट्टी-घाट, अकोडया टिहरी गढ़वाल।
हंसा धनई – ग्राम -बंगधार, पट्टी धारामण्डल, टिहरी गढ़वाल
बलबीर सिंह नेगी – मसूरी, लक्ष्मी मिष्ठान भंडार।
धनपत सिंह – गंगवाडा, पोस्ट गंडारस्यू, टिहरी उत्तराखंड।
मदन मोहन ममगई – नागजली, पट्टी-कुलड़ी, मसूरी।
राय सिंह बंगारी – ग्राम -तौदेरा, पट्टी पूर्वी भरदार टिहरी गढ़वाल।

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