ब्रह्मकमल से लहलहाया उच्च हिमालयी, यहां खिलते हैं 3 प्रजाति के कमल। महापुराणों, पुराणों व उप पुराणों में है इसका विस्तृत वर्णन..
केदारघाटी के ऊंचाई वाले इलाके सहित हिमालय के आंचल में बसे भू-भाग इन दिनों ब्रह्म कमल के पुष्पों से लदक बने हुए है। हिमालयी क्षेत्रों के आंचल में बसे सुरम्य मखमली बुग्यालों में ब्रह्म कमल खिलने से वहां के प्राकृतिक सौन्दर्य पर चार-चांद लगने शुरू हो गये। हिमालयी क्षेत्रों में ब्रह्म कमल, फेन कमल व सूर्य कमल तीन प्रजाति के कमल पाये जाते है जबकि नील कमल समुद्र में पाया जाता है। पर्यावरणविदों के अनुसार ब्रह्म कमल 14 हजार से लेकर 16 हजार फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है जबकि फेन कमल 16 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है। सूर्य कमल की प्रजाति बहुत दुर्लभ मानी जाती है। फेन कमल 18 हजार फीट की ऊंचाई पर बर्फबारी वाले इलाकों में पाया जाता है। ब्रह्म कमल की महिमा का गुणगान शिव महिम्मन स्त्रोत के श्लोक संख्या 19 में किया गया है। भगवान शंकर को ब्रह्म कमल अति प्रिय माना जाता है। केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग द्वारा केदारनाथ धाम के चारों तरफ ब्रह्म वाटिका के माध्यम से ब्रह्म कमल के संरक्षण व संवर्धन के प्रयास किये जा रहे हैं। श्रावण मास भगवान शंकर को ब्रह्म कमल अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
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केदारनाथ धाम से लगभग 9 किमी दूरी तय करने के बाद वासुकी ताल, रासी-मनणामाई पैदल ट्रैक पर सीला समुद्र का भूभाग, मदमहेश्वर-पाण्डवसेरा-नन्दी कुण्ड तथा बिसुणीताल-देवताओं के घौला क्षेत्र का भूभाग इन दिनों असंख्य ब्रह्म कमल के फूलों से लदक है। ब्रह्म कमल की महिमा का गुणगान शिव महिम्मन स्त्रोत के श्लोक संख्या 19 में विस्तृत से किया गया है। शिव महिम्मन स्त्रोत के श्लोक संख्या 19 के अनुसार एक बार विष्णु भगवान ने भगवान शंकर का हर हजार ब्रह्म कमल से अभिषेक किया तो विष्णु की परीक्षा लेने के लिए भगवान शंकर ने एक ब्रह्म कमल पुष्प को गायब कर दिया। भगवान शंकर के अभिषेक के दौरान जब एक पुष्प कम पडा़ तो भगवान विष्णु ने अपने दाहिने नेत्र से भगवान शंकर का अभिषेक किया। जब विष्णु ने अपना दाहिने नेत्र से भगवान शंकर का अभिषेक किया तो भगवान शंकर विष्णु की भक्ति से बडे़ प्रसन्न हुए तथा विष्णु को वरदान दिया कि आज से तुम कमल नयन नाम से विश्व विख्यात होगें, उसी दिन से भगवान विष्णु का एक और नाम कमल नयन पडा़।
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आचार्य हर्षमणि जमलोकी का कहना है कि जो व्यक्ति श्रावण मास में भगवान शंकर को एक ब्रह्म कमल अर्पित करता है उसे शिवतत्व, शिव ज्ञान तथा शिवलोक की प्राप्ति होती है। उन्होंने बताया कि लगभग 14 हजार फीट की ऊंचाई से ब्रह्म कमल को शिवालयों तक लाने के लिए ब्रह्मचार्य, अनुष्ठान का पालन करना पड़ता है तथा नंगे पांव ब्रह्म कमल तोड़ने व शिवालयों तक पहुंचाने की परम्परा युगों पूर्व की है। आचार्य कृष्णानन्द नौटियाल का कहना है कि ब्रह्म कमल की महिमा का वर्णन महापुराणों, पुराणों व उप पुराणों में विस्तृत से किया गया है तथा ब्रह्म कमल हिमालयी आंचल में उगने वाला दुर्लभ पुष्प है। मदमहेश्वर धाम के हक-हकूकधारी भगत सिंह पंवार ने बताया कि इन दिनों पाण्डवसेरा-नन्दी कुण्ड के आंचल में असंख्य ब्रह्म कमल खिलने से वहां के प्राकृतिक सौन्दर्य स्वर्ग के समान महसूस हो रहा है। केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग रेंज अधिकारी पंकज त्यागी ने बताया कि विभाग द्वारा ब्रह्म कमल के संरक्षण व संवर्धन के लिए निरन्तर प्रयास किया जा रहा है। विभाग द्वारा केदारनाथ धाम में ब्रह्म कमल के संरक्षण व संवर्धन के लिए एक ब्रह्म पौधशाला व तीन ब्रह्म कमल वाटिका का निर्माण किया गया है तथा मदमहेश्वर धाम में ब्रह्म कमल वाटिका निर्माण का आंकलन शासन को भेजा गया है। स्वीकृति मिलने पर मदमहेश्वर धाम में भी ब्रह्म वाटिका व ब्रह्म कमल पौधशाला का निर्माण शुरू किया जायेगा।
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