उत्तराखंडः वृक्ष संरक्षण अधिनियम में संशोधन करेगी सरकार, आसानी से काट सकेंगे निजी भूमि में खड़े पेड़..
उत्तराखंड में आने वाले समय में लोग अपनी निजी भूमि पर खड़े पेड़ों (कुछ प्रजातियों को छोड़कर) को बिना वन विभाग की अनुमति के काट सकेंगे। इसके लिए राज्य सरकार वृक्ष संरक्षण अधिनियम में संशोधन करने जा रही है। इसके अलावा फलदार वृक्षों को बढ़ावा देने के लिए वृक्षारोपण नीति में भी बदलाव किया जाएगा। अब राज्य में लोगों को अपनी जमीन से कई प्रजातियों के पेड़ काटने के लिए सरकारी विभाग से इजाजत लेने की जरूरत नहीं होगी। इसके लिए सरकार, उत्तराखंड के वृक्ष संरक्षण अधिनियम में संशोधन करने जा रही है। वन मंत्री सुबोध उनियाल ने सोमवार को वन मुख्यालय में विभागीय समीक्षा बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत में ये जानकारी दी। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति ने यदि अपने खेत या निजी भूमि में पेड़ लगाया है तो कुछ प्रजातियों को छोड़कर उसे अपने ही लगाए पेड़ को काटने के लिए वन विभाग के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगें, इसके लिए सरकार अधिनियम में संशोधन करने जा रही है।
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लोग पेड़ लगाने को होंगे प्रोत्साहित
वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि लोग अपनी जमीन पर पेड़ लगाते हैं और उन्हें काटने के लिए उन्हें वन विभाग के चक्कर लगाने पड़ते हैं। ऐसे में लोगों की अपनी भूमि पर पेड़ लगाने को लेकर रुचि कम हो रही है। इसी को देखते हुए हम उत्तराखंड के वृक्ष संरक्षण अधिनियम में संशोधन की तैयारी कर रहे हैं। इससे लोगों को अपनी जमीन से तय प्रजातियों के पेड़ काटने के लिए परमिशन नहीं लेनी पड़ेगी। वे अपने लगाए पेड़, अपनी जरूरत के हिसाब से काट सकेंगे। इससे लोगों में पेड़ लगाने के प्रति रुचि बढ़ेगी, खासकर पहाड़ी और ग्रामीण इलाकों में। इससे वे और पेड़ लगाने को प्रोत्साहित होंगे। पत्रकार वार्ता में प्रमुख सचिव वन आरके सुधांशु, पीसीसीएफ विनोद सिंघल भी मौजूद थे।
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पौधरोपण के माध्यम से नदियों को कैसे पुनर्जीवित किया जाए
वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि आम आदमी वनों के अनुकूल अपनी सोच को विकसित करे, सरकार की ओर से इसके लिए गंभीरता से प्रयास किए जा रहे हैं। कहा कि राज्य की आवश्यकताओं के हिसाब से उत्तराखंड वृक्षारोपण नीति में भी बदलाव किया जाएगा। ताकि यहां की भौगोलिक और पर्यावरणीय स्थितियों को देखते हुए पौधों का रोपण किया जा सके। इसके अलावा वनों को आजीविका से जोड़ने पर भी जोर दिया जाएगा। वन पंचायतों और महिलाओं को इस दिशा में नए प्रयोगों के साथ जोड़ा जाएगा। मंत्री ने कहा कि राज्य में सूख रहीं नदियों को पौधरोपण के माध्यम से कैसे पुनर्जीवित किया जाए, इस पर भी मंथन किया जा रहा है।
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28 प्रजातियां ऐक्ट से बाहर
वृक्ष संरक्षण ऐक्ट 1976 यूपी के जमाने से लागू है। उत्तराखंड बनने के बाद से इसमें अब तक कोई संशोधन नहीं किया गया। हालांकि पेड़ों की 28 प्रजातियों को इससे बाहर रखा गया है। इसमें अगस्त, कैजूरिना, जंगल जलेबी, अरू, बांज, उतीस, पॉपलर, फराद, बकेन, बबूल, विलायती बबूल, यूकेलिप्टस, सिरिस रोबिनिया, कवाटेल, बिली, सुबबूल, अयार, कठबेर, खटिक, जामुन या जमोना, ढाक या पलास, पेपर मलबरी, बेर, भिमल या बकुला, मेहल, सेंजना और शहतूत शामिल हैं।
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कटर को गाइडलाइन की सिफारिश
बैठक में अफसरों ने मंत्री व प्रमुख सचिव को बताया कि चकराता और आसपास हर साल देवदार के पेड़ बड़ी संख्या में काटे जाते हैं। हर साल इसके लिए बड़ी संख्या में परमिशन मांगी जाती है। यहां करीब सौ से ज्यादा पेड़ काटने के कटर हैं। इनसे ये कटान से लेकर स्लीपर बनाने तक का काम एक घंटे में कर देते हैं। उन्होंने इन कटरों के लिए लाइसेंस और गाइडलाइन बनाने की सिफारिश की। कई अन्य राज्यों में भी ऐसे कटरों के लिए लाइसेंस की व्यवस्था है।
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बैठक में अधिकारियों ने किया प्रस्ताव का विरोध
वृक्ष संरक्षण अधिनियम में संशोधन को लेकर जब वन मुख्यालय में चल रही विभागीय बैठक में चर्चा हुई तो इसका विरोध भी हुआ। जब प्रमुख सचिव की ओर से इस ऐक्ट को खत्म कर लोगों को राहत देने की बात कही गई तो वन अधिकारियों ने इसका विरोध किया। उन्होंने इसे राज्य में साल और देवदार जैसी प्रजातियों के लिए बड़ा खतरा बताया, क्योंकि साल का रीजनरेशन नहीं हो रहा और देवदार का भी काफी कम हो चुके हैं। वन अधिकारियों ने इसमें संशोधन करने के बजाय परमिशन की प्रक्रिया को सरल बनाने की बात कही। काफी देर तक चर्चा के बाद वन मंत्री सुबोध उनियाल ने इसमें जरूरी संशोधन कर लोगों के लिए सहज बनाने की बात कही।
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