Human Wildlife Conflict: उत्तराखंड में लगातार बढ़ रहे जंगली जानवरों के हमले..
Human Wildlife Conflict. Hillvani
उत्तराखंड देश के उन चुनिंदा राज्यों में शामिल है, जहां इंसानों और जंगली जानवरों के बीच टकराव सबसे ज़्यादा होता है। राज्य में गुलदार और भालू सहित कई जंगली जानवरों के हमलों से लोग दशकों से परेशान हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 25 वर्षों में 1250 से ज़्यादा लोगों की जान ऐसे हमलों में जा चुकी है, जबकि, 6000 से अधिक लोग घायल हुए हैं। वर्ष 2000 से लेकर सितंबर 2025 तक के आंकड़ों को देखें तो राज्य में मानव वन्य जीव संघर्ष में गुलदार, हाथी, बाघ, भालू, सांप, जंगली सूअर, बंदर, लंगूर, मगरमच्छ, ततैया, मॉनिटर छिपकली, जैसे वन्यजीवों से मानव संघर्ष में 1256 इंसानों की मौत हुई है, जबकि 6433 लोग घायल हुए। वन्यजीवों विशेषकर गुलदार, जंगली सुअर, रीछ के आतंक के चलते कई गांव असुरिक्षत बने हैं। पर्वतीय जिलों में मानव वन्यजीव संघर्ष की सबसे अधिक घटनाएं घट रही हैं। ये जंगली जानवर अक्सर लोगों पर हमला कर देते हैं, जिससे कई लोगों की मौत हो जाती है, जबकि कई घायल हो जाते हैं।
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मानव-वन्यजीव संघर्ष के डरावने आंकड़।
राज्य स्थापना से लेकर अभी तक प्रदेश में मानव वन्य जीव संघर्ष में 1256 लोगों की मौत हो चुकी है। इसमें गुलदार के हमले में 543, हाथियों के द्वारा 230, बाघ के द्वारा 105, भालू से 69, सांप से 260, जंगली सूअर से 29, मगरमच्छ से 9, सियार से एक, ततैया से 9 और मॉनिटर छिपकली के हमले से एक व्यक्ति की मौत हुई है। घायल हुए इंसानों की संख्या लगभग 6433 है। वन विभाग के अनुसार राज्य में अब तक गुलदार के हमलों में सबसे ज्यादा 543 लोगों की जान गई है, जबकि भालुओं के हमलों में 69 लोग मारे गए हैं। इसके अलावा गुलदार और भालुओं के हमलों में करीब 4000 लोग घायल हुए हैं। वन क्षेत्रों के आस-पास रहने वाले लोगों के लिए यह खतरा दिनचर्या का हिस्सा बन गया है।
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सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं।
उत्तराखंड के कई पहाड़ी इलाकों में गुलदार, भालू, जंगली सुअरों और बंदरों के बढ़ते आतंक के कारण लोग अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं। कई गांव लगभग खाली हो चुके हैं। बंदर, लंगूरों और जंगली सुअरों द्वारा फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। जंगलों से सटे गांवों में जंगली जानवरों का सबसे ज्यादा खतरा बना हुआ है। सुरक्षा उपायों का कोई इंतजाम नहीं है। हिमालयी राज्य उत्तराखंड को वनसंपदा और वन्यजीवों के लिहाज से बेहद समृद्ध माना जाता है। बाघ, गुलदार, हाथी से लेकर अन्य वन्यजीवों का यहां सुरक्षित वासस्थल है, लेकिन इंसानों पर हो रहे हमलों को लेकर हालात लगातार चिंताजनक बने हुए हैं। पर्वतीय क्षेत्र में गुलदार सबसे बड़ी चुनौती बन चुके हैं, इसलिए कभी आंगन में खेल रहे बच्चे, खेत में काम कर रही महिला और घास लेकर घर को लौट रही बुजुर्ग इनका निवाला बन रही हैं।
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वन विभाग के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे।
उत्तराखंड के हर जिले में ये घटनाएं हो रही हैं। गुलदारों के हमले के मामले में गढ़वाल मंडल के पौड़ी, टिहरी, रूद्रपुयाग, चमोली और कुमाऊं मंडल के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत, बागेश्वर जिले बेहद संवेदनशील श्रेणी में हैं। उसके बावजूद उत्तराखंड वन विभाग के पास मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए कोई प्रभावी योजना नहीं है। राज्य में मानव-वन्यजीव संघर्ष एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। राज्य वन विभाग की भारी भरकम मशीनरी इस अति गंभीर समस्या के आगे असहाय नजर आ रही है। वन्यजीवों से मानव जीवन खतरे में पड़ जाने के कारण पहाड़ों से पलायन भी बढ़ता जा रहा है और गांव निरंतर खाली होते जा रहे हैं। जिन गावों में थोड़े बहुत लोग टिके हुए भी हैं, उनका जीवन गुलदार, भालू, बंदर एवं सूअर जैसे वन्य जीवों ने संकट में डाल दिया है। मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए वन विभाग के स्तर पर किए जा रहे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं।
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जंगल से सटे गांव खाली हो रहे
उत्तराखंड के कई पहाड़ी इलाकों में गुलदार, भालू और बंदरों के बढ़ते आतंक के कारण लोग अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं। कई गांव लगभग खाली हो चुके हैं। जानकारों का कहना है कि केवल मुआवज़ा बढ़ाना काफी नहीं होगा। जरूरत इस बात की भी है कि जंगलों से सटे गांवों में सुरक्षा उपाय, जागरूकता अभियान और मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन योजना को जमीन पर उतारा जाए।
उत्तराखंड और अन्य राज्यों में मुआवज़े की स्थिति
उत्तराखंड में लगातार बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष के बीच अब राज्य सरकार ने जंगली जानवरों के हमलों में जान गंवाने पर मिलने वाली क्षतिपूर्ति राशि को 6 लाख से बढ़ाकर 10 लाख रुपए कर दिया है। अब उत्तराखंड भी उन राज्यों की सूची में शामिल हो गया है, जहां जंगली जानवरों के हमले में 10 लाख रुपये तक मुआवजा दिया जाता है।
महाराष्ट्र- 25 लाख
कर्नाटक- 20 लाख
बिहार और ओडिशा- 10 लाख
हालांकि, हमलों में घायल होने पर मिलने वाली राशि फिलहाल जैसी थी वैसी ही रहेगी।
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