खुशखबरीः पहाड़ में पहली बार मिलेगा ESI का लाभ, यहां खुलेगी डिस्पेंसरी। मिलेगा निशुल्क इलाज..

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प्रदेश के सात पर्वतीय जिलों में पहली बार कर्मचारी राज्य बीमा योजना (ईएसआईसी) का लाभ मिलने जा रहा है। इसके लिए निदेशालय इन सात जिलों में डिस्पेंसरी खोलेगा, जिनसे 50 हजार बीमित कार्मिकों के परिजन सहित दो लाख लोगों को निशुल्क इलाज की सुविधा मिलेगी। वहीं, प्रदेश में तीन नए शहरों में भी ईएसआई के अस्पताल खुलने जा रहे हैं। निदेशालय के मुताबिक, उत्तरकाशी, चंपावत, रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और बागेश्वर में अभी तक ईएसआईसी बीमित कार्मिकों व उनके परिजनों को स्वास्थ्य सुविधा का लाभ लेने के लिए मैदानी जिलों में आना पड़ता था। प्रभारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आकाशदीप ने बताया कि श्रम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, इन सात जिलों में अभी तक 50 हजार बीमित कर्मचारी हैं। हालांकि, इन जिलों के तमाम लोग ऐसे हैं जो कि दूसरे राज्यों में नौकरी करते हैं। ऐसे में उनके परिजन पहाड़ में ही ईएसआईसी का लाभ ले सकेंगे।

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वहीं दूसरी तरफ ऊधमसिंहनगर, हरिद्वार और नैनीताल में पहले से चल रही 10 डिस्पेंसरी के पते बदलने जा रहे हैं। निदेशालय ने नई जगहों पर किराये के भवन में बदलाव की विज्ञप्ति जारी की है। इसके तहत ऊधमसिंहनगर जिले के सितारगंज, बाजपुर, जसपुर व रुद्रपुर में, हरिद्वार के भगवानपुर, हरिद्वार व सिडकुल बहादराबाद में और नैनीताल के लालकुआं, हल्द्वानी, नैनीताल में डिस्पेंसरी नए भवन में शिफ्ट की जाएंगी। कर्मचारी राज्य बीमा योजना की ओर से हरिद्वार में 300 बेड का अस्पताल बनवाया जा रहा है, जिसमें 250 बेड स्पेशलिटी और 50 बेड सुपर स्पेशलिटी के होंगे। यह अस्पताल 2025 तक बनकर तैयार हो जाएगा। इसके बाद ईएसआई बीमित कर्मचारियों को पहली बार अत्याधुनिक और महंगा इलाज निशुल्क मिलेगा।

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वहीं, देहरादून में ऋषिकेश-रायवाला के बीच में ईएसआई का 100 बेड का अस्पताल बनाने का प्रस्ताव जिलाधिकारी को भेजा गया है। दूसरी ओर, काशीपुर में भी शहर के निकट ही 100 बेड का ईएसआई अस्पताल बनाने का प्रस्ताव तैयार कर भेजा गया है। अभी तक प्रदेश में ईएसआई का केवल एक अस्पताल रुद्रपुर में है। बता दें कि कंपनियों, फैक्ट्रियों या अन्य संस्थानों में काम करने वाले करीब सात लाख कर्मचारी ऐसे हैं जो कि ईएसआई के दायरे में आते हैं। इनके परिजनों को मिलाकर ईएसआई से स्वास्थ्य लाभ लेने वालों की संख्या करीब 28 लाख पहुंचती है। ऐसे में विभाग के पास बड़ी जिम्मेदारी है।

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